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हिमाचल में स्क्रब टायफस का खतरा: समय पर जांच और जागरूकता ही है बचाव

 जिला शिमला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर यशपाल रांटा ने आगाह किया है कि हिमाचल प्रदेश में स्क्रब टायफस एक स्थानिक रोग है, जो मानव शरीर के आंतरिक अंगों को प्रभावित करता है और समय पर इलाज न मिलने पर मृत्यु भी हो सकती है। उन्होंने कहा कि तेज बुखार होने पर इसे हल्के में ना लें और तुरंत जांच करवाएं, क्योंकि यह स्क्रब टायफस भी हो सकता है।

डॉक्टर रांटा ने बताया कि यह रोग एक विशेष जीवाणु रिक्टेशिया से संक्रमित पिस्सू के काटने से फैलता है, जो झाड़ियों, बगीचों, घास और चूहों में पाया जाता है। यह जीवाणु चमड़ी के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है और तेज बुखार, शरीर में ऐंठन, अकड़न, दर्द तथा गर्दन, बाजू और कूल्हों में गिल्टियां जैसे लक्षण उत्पन्न करता है।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए उन्होंने सलाह दी कि बाहर खेतों, बगीचों और जंगलों में जाते समय पूरा शरीर विशेषकर टांगें, पांव और बाजू अच्छी तरह ढककर रखें। घर वापसी पर नहाएं और कपड़े बदलें, और उन कपड़ों को धोएं। शरीर की सफाई का खास ध्यान रखें। घर तथा उसके आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें, खरपतवार न उगने दें, चूहों को मारने के लिए उपयुक्त दवाइयां लगाएं और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें।

उन्होंने यह भी बताया कि जिला शिमला के सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में स्क्रब टायफस का उपचार निशुल्क उपलब्ध है। स्क्रब टायफस के लक्षण दिखने पर तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य संस्था में जांच करानी चाहिए ताकि समय पर उचित इलाज किया जा सके।

यह आगाह निवारक कदमों और जागरूकता के माध्यम से हिमाचल प्रदेश में इस गंभीर रोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है।

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